मुद्रा योजना, जिसे वर्ष 2015 में शुरू किया गया था, का उद्देश्य छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) को बिना किसी गिरवी के कर्ज प्रदान करना है। इसका लक्ष्य बेरोज़गारी को कम करना और स्वरोजगार को प्रोत्साहित करना है। इस योजना के तहत, उद्यमियों को अपने व्यवसाय को शुरू करने या उसे विस्तार देने के लिए सस्ती दरों पर कर्ज मिलता है। हालांकि, हाल ही में नीति आयोग ने मुद्रा योजना के तहत बढ़ते हुए नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA) पर चिंता जताई है, जो इस योजना की सफलता और स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गई है।
मुद्रा योजना की विशेषताएँ
- शिशु (Shishu): ₹50,000 तक के लोन।
- किशोर (Kishore): ₹50,000 से ₹5 लाख तक के लोन।
- तरुण (Tarun): ₹5 लाख से ₹10 लाख तक के लोन।
यह योजना बिना किसी गिरवी के कर्ज प्रदान करती है, और आवेदन प्रक्रिया सरल होती है। कर्ज प्राप्त करने के लिए केवल आधार कार्ड, पैन कार्ड, और अन्य बुनियादी दस्तावेज की जरूरत होती है। इसका मुख्य उद्देश्य छोटे व्यवसायियों को वित्तीय मदद प्रदान करना है जो परंपरागत बैंकिंग प्रणाली से बाहर होते हैं या जिनके पास पर्याप्त संपत्ति नहीं होती है।
एनपीए की समस्या
NPA तब उत्पन्न होता है जब उधारकर्ता निर्धारित समय के भीतर अपने ऋण का पुनर्भुगतान नहीं करता है। मुद्रा योजना के तहत बढ़ते NPA की समस्या ने नीति आयोग और अन्य सरकारी एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है। इससे योजना की प्रभावशीलता और वित्तीय स्थिरता पर सवाल उठने लगे हैं।
मुख्य कारणों में शामिल हैं:
- उधारकर्ता का आर्थिक संकट: कई बार, छोटे व्यवसाय और उद्यमी अपने व्यापार में असफल हो जाते हैं या उनके व्यापारिक मॉडल सही नहीं होते, जिससे उन्हें कर्ज चुकाने में कठिनाई होती है।
- डिफॉल्ट की उच्च दर: चूंकि मुद्रा लोन प्राप्त करने के लिए सिबिल स्कोर और अन्य पारंपरिक क्रेडिट चेक्स की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए कर्ज की वापसी की संभावना का आकलन कठिन होता है।
- कम फाइनेंशियल लिटरेसी: कई उधारकर्ता वित्तीय प्रबंधन में सक्षम नहीं होते, जिससे वे ऋण चुकाने में विफल रहते हैं।
- नीति आयोग की चिंताएँ
नीति आयोग ने इस स्थिति पर गहरी चिंता जताई है। उनका मानना है कि इस बढ़ते NPA के कारण मुद्रा योजना के उद्देश्य पर असर पड़ सकता है। इससे न केवल बैंकों की वित्तीय स्थिति प्रभावित होती है, बल्कि योजना की समग्र प्रभावशीलता भी कम हो सकती है।
नीति आयोग की चिंताओं में मुख्य बिंदु हैं:
ऋण की गुणवत्ता में कमी: ऋण के वितरण में गुणवत्ता की कमी से NPA की दर बढ़ रही है।
गैर-लाभकारी व्यवसाय: कई बार कर्ज प्राप्तकर्ता ऐसे व्यवसायों में निवेश करते हैं जो लाभकारी नहीं होते, जिससे कर्ज की वापसी में कठिनाई होती है।
अधिकारियों की लापरवाही: कई बार ऋण देने की प्रक्रिया में लापरवाही भी NPA की समस्या को बढ़ाती है।
सरकार द्वारा उठाए जा सकते कदम
नीति आयोग और सरकार ने इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए कुछ सख्त कदम उठाने पर विचार किया है:
- कर्ज देने की प्रक्रिया में सुधार: कर्ज की पात्रता और मूल्यांकन प्रक्रिया को सख्त किया जा सकता है। ऋण की स्वीकृति से पहले अधिक गहराई से जांच की जा सकती है।
- क्रेडिट चेक और सिबिल स्कोर: भविष्य में ऋण देने से पहले क्रेडिट चेक और सिबिल स्कोर को अनिवार्य किया जा सकता है, ताकि कर्ज प्राप्तकर्ता की वित्तीय स्थिति का सही आकलन किया जा सके।
- फाइनेंशियल लिटरेसी प्रोग्राम: कर्ज प्राप्तकर्ताओं के लिए वित्तीय साक्षरता प्रोग्राम आयोजित किए जा सकते हैं, जिससे वे अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर ढंग से प्रबंधित कर सकें।
- अधिक निगरानी और आडिट: मुद्रा योजना के तहत वितरित किए गए लोन की नियमित निगरानी और आडिट की जा सकती है, जिससे असामान्य गतिविधियों को समय पर पकड़ा जा सके।
- ऋण पुनर्गठन योजनाएँ: उन व्यवसायों के लिए जो समस्याओं का सामना कर रहे हैं, पुनर्गठन योजनाओं की पेशकश की जा सकती है ताकि वे कर्ज चुकाने में सक्षम हो सकें।
इन उपायों को लागू करके, सरकार मुद्रा योजना की सफलता को सुनिश्चित करने और NPA की समस्या को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा सकती है। इस प्रकार, योजना के लक्ष्यों को पूरा करना और वित्तीय स्थिरता बनाए रखना संभव होगा।